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________________ . त्रैवर्णिकाचार । नम्रीभूताः परं भक्त्या जैनधर्मप्रभावकाः । तेषामुध्दृत्य मूर्धानं ब्रूयाद्वाचं मनोहराम् ।। ९३ ।। जो भारी भक्तिसे जैन धर्मकी प्रभावना करनेवाले हैं और बड़े नम्र हैं उनके सामने अपना मस्तक ऊंचा उठा कर मनोहर वचन बोले ॥ ९३ ॥ शास्त्रश्रवण और शास्त्रकथन । गुरोरग्रे ततो मामुपविश्य मदोज्झितः । शृणुयाच्छास्त्रसम्बन्धं तत्त्वार्थपरिसूचकम् ।। ९४ ।। १७५ इसके बाद मद छोड़ कर - विनय भावसे गुरुके सामने भूमिपर बैठ कर तत्वोंकी कथनी करनेवाले शास्त्र के रहस्यको गुरु- मुखसे सुने ॥ ९४ ॥ अन्येषां पुरतः शास्त्रं स्वयं वाऽथ प्रकाशयेत् । मनसा वाऽप्रमत्तेन धर्मदीपनहेतवे ।। ९५ ।। जीवाजीवास्रवा बन्धसंवरौ निर्जरा तथा । मोक्षश्च सप्त तत्त्वानि निर्दिष्टानि जिनागमे ॥ ९६ ॥ षड् द्रव्याणि सुरम्याणि पञ्च चैवास्तिकायकाः । यतिश्रावकधर्मस्य शास्त्रार्थं कथयेद्बुधः ।। ९७ ।। मिथ्यामतं परिच्छिद्य जैनमार्ग प्रकाशयेत् । प्रमाणनयनिक्षेपैरनेकान्तमताङ्कितैः ॥ ९८ ॥ पुण्यं पुण्यफलं पापं तत्फलं च शुभाशुभम् 1 दयादानं भवेत्पुण्यं पापं हिंसानृतादिकम् ॥ ९९ ॥ इत्यादि धर्मशास्त्राणि समुद्दिश्य सविस्तरम् । यतिपण्डितमुख्यानां शुश्रूषां कारयेन्नरः ।। १०० ।। अथवा धर्मक्की प्रभावनाके निमित्त बहुतही सावधानी के साथ अन्य साधर्मियोंको आप खुद शास्त्र सुनावे । जिनमतमें कहे गये जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वों, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल इन छह द्रव्यों, और काल द्रव्यको छोड़ कर बाकीके पांच अस्तिकाय तथा अनगार धर्म और श्रावक धर्मके स्वरूपका अच्छी तरह कथन करे । अनेकान्तसे अंकित प्रमाण नय और निक्षेप द्वारा मिथ्या मतोंका खण्डन करते हुए जैन मार्गका प्रकाशन करे । पुण्य पाप और इनके शुभ अथवा अशुभ फलको समझावे । दया दान करनेसे पुण्य होता है । हिंसा करने झूठ बोलने चौरी करने कुशील सेवन करने और परिग्रह रखनेसे
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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