SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वार्णिकाचार। ९५ आभिः पुण्याभिरद्भिः परिमलबहलेनामुना चन्दनेन, __ श्रीद्विक्पेयैरमीभिः शुचिसदकचयैरुद्गमैरेभिरुद्धैः । हृद्यैरोभिनिवेधैर्मखभवनमिमैर्दीपयद्भिः प्रदीपै धूपैः प्रेयोभिरेभिः पृथुभिरपि फलैरेभिरर्चामि भूमिम् ॥ ५९ ॥ इस पवित्र जल, सुगन्ध चन्दन, देखनेमें अत्यन्त सुन्दर पवित्र अक्षतों, फूलों, सुन्दर नैवेयों, जलते हुए दीपकों, उत्तम सुगन्धित धूपों और बड़े बड़े उत्तम फलोंसे इस यागशाला-पूजा करनेकी जमीन-की मैं पूजा करता हूँ ॥ ५९॥ ततः श्रुतं गुरुं सिद्धं यक्षान्यक्षीश्च देवताः। पूजयेद्विधिवद्भक्त्या दीर्घया दम्भवर्जितः ॥६०॥ इसके बाद शास्त्र, गुरु, यक्ष और यक्षीकी विधिपूर्वक परम भक्तिके साथ छल-कपट रहित होकर पूजा करे ॥ ६०॥ .. आभरण धारण करनेकी विधि । जिनांघ्रिचन्दनैः स्वस्य शरीरे लेपमाचरेत् । यज्ञोपवीतसूत्रं च कटिमेखलया युतम् ॥ ६१ ॥ मुकुटं कुण्डलद्वन्द्वं मुद्रिकां करकङ्कणम् । बाहुबन्धांघ्रिभूषे च वस्त्रयुग्मं च तत्परम् ॥ ६२॥ जिनांघ्रिस्पर्शितां मालां निर्मलां कण्ठदेशके । ललाटे तिलकं कार्य तेनैव चन्दनेन च ॥ ६३ ॥ जिनदेवके चरणस्पर्शित चन्दनसे अपने शरीरमें लेप करे, यज्ञोपवीत पहने, कमरमें करधोनी पहने, शिर पर मुकुट लगावे, दोनों कानोंमें कुण्डल.पहने, उँगलीमें मुद्रिका पहने, दोनों हाथोंमें चूड़ा ( सोनेके कड़े) पहने, दोनों भुजाओंमें भुजबन्ध पहने, पैरोंमें घूघरू बाँधे, धोती दुपट्टा पहने-ओढ़े, जिनदेवके चरणोंसे स्पर्शित निर्मल माला मलेमें पहने और ललाटमें उसी ( जिनचरण-स्पर्शित ) चन्दनसे तिलक करे॥ ६१ ॥ ६३॥ तिलकोंके भेद । आतपत्रं तथा चक्र अर्धचन्द्र त्रिशूलकम् । मानस्तम्भस्तथा सिंहपीठकं चेति षविधम् ॥ ६४ ॥.....
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy