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सोमसेनभट्टारकाविरचित
घण्टाचमरसम्भूषैर्भूषयेजिनवेदिकाम् । पूर्णकुम्भार्चनाद्रव्यदीश्च वामभागतः ॥५१॥ गन्धकुट्यां जिनेन्द्रस्य प्रतिमां च निवेशयेत् । सिद्धचक्रस्य यन्त्रं च पूजयेद्गुरुपादुकाम् ॥५२॥ सहस्रनाम देवस्य पठेत्तावद्विधानतः। सकलीकरणं कृत्वा शोधयेनिजदेहकम् ॥ ५३॥ गन्धपुष्पाक्षतैस्तोयैः पूजाद्रव्याणि शोधयेत् ।
पूजोपकरणस्तोमं शोधयेच्छुचिभिर्जलैः ॥ ५४ ॥ पाँच रंगके जुदे जुदे चूणों से रंगवल्ली खेंचे। कदली वृक्ष, और सल्लकी वृक्षके स्तोमोंसे, गोंसे, तोरणोंसे, घण्टा और चमरोंसे वेदीको अच्छी तरह सजावे । जलके घड़ों, पूजाद्रव्यों और द को अपनी बाई ओर रक्खे । गन्धकुटीमें श्री जिनेन्द्र देवकी प्रतिमाको स्थापन करे । पासहीमें सिद्धचक्रके यंत्र और गुरु-पादकाएँ ( चरण ) रख कर उनकी पूजा करे । विधिपूर्वक जिन सहस्रनामको पढ़े। सकलीकरण कर अपनी देहको शुद्ध करे । तथा प्रासुक निर्मल गन्ध-पुष्प-अक्षत आदि पूजाद्रव्यको और पूजाके बर्तनोंको धोकर साफ करे ॥ १० ॥ ५४॥
तत ईशानदिग्भागे वास्तुवायुकुमारकान् । मेघानिनागदेवांश्च भूमिशुद्धिविधायकान् ॥ ५५ ॥ दर्भाम्बुवन्हिभिः शुद्धभूमि संशोध्य पूजयेत् । महावाद्यनिनादेन पुष्पांजलीमिरञ्जसा ॥ ५६ ॥ शिष्या विद्यागुरूंथात्र सार्घ्यदानेन तर्पयेत् ।
आग्निकोणे क्षेत्रपालं गुडतैलैश्च पूजयेत् ॥ ५७॥ इसके बाद दर्भ, जल और अग्निद्वारा भूमिशुद्धि कर वेदीकी ईशान दिशामें भूमि शुद्धकरनेवाले वास्तुदेव, वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार और नागकुमारकी गाजे-बाजेकी ध्वनिपूर्वक पुष्पांजलि द्वारा पूजा करे । और यहीं पर अपने गुरुओंका अर्घ देकर तर्पण करे-पूजा करे । तथा आग्नेय दिशामें गुड़ तेल द्वारा क्षेत्रपालकी पूजा करे ॥ ५५ ॥ ५७ ॥
ईशानदिशि नागाँश्च क्षीरैरञ्जलिपूरितैः।
आभिः पुण्याभिरित्यादि श्लोकेन भुवमर्चयेत् ॥ ५८ ॥ ईशान दिशामें अंजलिभर जलसे नागकुमारोंकी पूजा करे। और आभिः पुण्याभिः इत्यादि नीचे लिखा श्लोक पढ़कर भूभिकी पूजा करे ॥ ५८॥