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________________ (७६१) युक्त प्रतिमा प्रकट हुई, और जैनधर्मकी बहुत महिमा हुई। रानी उस प्रतिमाको अपने अंतःपुरमें लेगई, और अपने नये बनवाये हुए चैत्यमें स्थापनकर नित्य त्रिकालपूजा करने लगी. __एक समय रानीके आग्रहसे राजा वीणा बजा रहा था और रानी भगवान्के सन्मुख नृत्य करती थी. इतनेमें राजाको रानीका शरीर शिरविहीन नजर आया, जिससे वह घबरा गया, और वीणा बजानेकी कंबिका उसके हाथमेंसे नीचे गिर पडी. नृत्यमें रसभंग होनेसे रानी कुपित हुई, तब राजाने यथार्थबात कही. एक समय दासीका लाया हुआ वस्त्र श्वेत होते हुए भी प्रभावतीने रक्तवर्ण देखा, और क्रोध कर दासी पर दर्पण फेंक मारा, जिससे वह मर गई. पश्चात् वही वस्त्र प्रभावतीने पुनः देखा तो श्वेत नजर आया, जिससे उसने निश्चय किया कि अब मेरा आयुष्य थोडा ही रह गया है, और चेडीरूप स्त्रीकी हत्यासे पहिले प्राणातिपातविरमणव्रतका भी भंग होगया है, ऐसे वैराग्य पा कर दीक्षा लेनेकी आज्ञा मांगने के लिये राजाके पास गई, राजाने 'देवताके भवमें जाके तूने मुझे सम्यक्प्रकारसे धर्ममें प्रवृत्त करना' यह कह कर आज्ञा दे दी. तदनन्तर प्रभावतीने उस प्रतिमाकी पूजाके निमित्त देवदत्तानामकी कुब्जाको रख कर स्वयं बडे समारोहसे दीक्षा ग्रहण करी, और अनशनसे काल करके सौधर्मदेवलोकमें देवता हुई, उस देवताने बहुत ही प्रतिबोध किया, परन्तु राजाउदायनने तापसकी भक्ति नहीं छोडी. दृष्टिराग
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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