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________________ तोडना कितना कठिन है ! अस्तु, पश्चात् देवताने तापसके रूपसे राजाको दिव्य अमृतफल दिया. उसका रस चखते ही लुब्ध हुए राजाको तापसरूपी देवता अपने रचे हुए आश्रममें लेगया. वहां वेषधारी तापसोंने बहुत ताडना करनेसे राजा भागा, और जैनसाधुके उपाश्रयमें आया. साधुओंने अभयदान दिया, जिससे राजाने जैनधर्म स्वीकार किया. पश्चात् देवता अपनी ऋद्धि बताकर, राजाको जैनधर्ममें दृढ करके 'आपत्तिके समय मेरा स्मरण करना.' यह कह अदृश्य होगया. इधर गान्धार नामक कोई श्रावक सर्वस्थानोंमें चैत्यवंदन करने निकला था. बहुतसे उपवास करनेसे संतुष्ट हुई देवीने उसे वैताढ्य पर्वत पर ले जाकर वहांको प्रतिमाओंको वंदन कराया, और मनवांछित- इच्छा पूर्ण करनेवाली एकसौ आठ गोलियां दी. उसने एक गोली मुंहमें डालकर चिन्तवन किया कि, 'मैं वीतभयपट्टण जाता हूं. गुटिकाके प्रभावसे वह वहां आगया. कुब्जादासीने उसे उस प्रतिमाका वन्दन कराया. अनन्तर वह गान्धारश्रावक वहां बीमार होगया, कुब्जाने उसकी भलीभांति सुश्रूषा करी. अपना आयुष्य स्वल्प रहा जान उस श्रावकने शेष सर्वगुटिकाएं कुब्जाको देकर दीक्षा ली. कुन्जा एक गुटिका भक्षण करनेसे अनुपम सुन्दरी होगई. जिस. से उसका नाम 'सुवर्णगुलिका' प्रसिद्ध होगया. दूसरी गोली भक्षण कर उसने चिन्तवन किया कि, "चौदह मुकुटधारी
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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