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________________ ( ७६० ) वैसी ही दुसरी प्रतिमा तैयार की। पश्चात् प्रतिष्ठा करवा कर सर्वागमें आभूषण पहिरा कर, पुष्पादिक वस्तुसे उसकी पूजा करी और श्रेष्ठचंदन के डब्बे में रखी । एक समय उस प्रतिमा - के प्रभाव से व्यन्तरने समुद्र में एक नौका के छः महीनेके उपद्रव दूर किये । और उस नौकाके नाविकको कहा कि- " तू यह प्रतिमाका डब्बा सिंधुसैौवीरदेशान्तर्गत वीतभयपट्टणमें ले जा और वहां बाजार में ऐसी उद्घोषणा कर कि, " देवाधिदेवकी के प्रतिमा लो।" उक्त नाविकने वैसा ही किया । तब तापस भक्त उदायन राजा तथा दूसरे भी बहुतसे अन्यदर्शनियोंने अपने अपने देवका स्मरण करके उस डब्बे पर कुल्हाडे से प्रहार किये. जिसमें कुल्हाडे टूट गये, किन्तु डब्बा नहीं खुला | सर्व लोग उद्विग्न हो गये । मध्यान्हका समय भी होगया । इतने में रानी - प्रभावतीने राजाको भोजन करनेके लिये बुलानेको एक दासी भेजी । राजाने उसी दासीके द्वारा संदेशा भेजकर कौतुक देखनेके लिये रानीको बुलवाई | रानीप्रभावतीने वहां आते ही कहा कि, “ इस डिब्बेमें देवाधिदेव श्री अरिहंत है, दूसरा कोई नहीं । अभी कौतुक देखो । " यह कह रानीने यक्षकर्दम से उस डब्बे पर अभिषेक किया और एक पुष्पांजली देकर कहा कि, " देवाधिदेव ! मुझे दर्शन दो ।" इतना कहते ही जैसे प्रातःकाल में कमलकलिका विकसित होती हैं वैसे डब्बा अपने आप खुल गया। अंदरसे सुकोमल विकसित पुष्पोंकी माला "
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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