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________________ (७५५) शत्रुजयका जीर्णोद्धार करनेका पिताने अभिग्रह सहित निर्धारित किया था, जिससे मंत्री वाग्भट्टने वह काम शुरू करवाया, तब बडे २ श्रेष्ठी लोगोंने अपने अपने पासका द्रव्य भी उस कार्यमें दिया. छः द्रम्मकी पूंजीवाला भीम नामक एक घी बेचनेवाला था, जब टीप फिरती हुई उसके पास आई, तब उसने घी बेचकर की हुइ पूंजी सहित सर्व द्रव्य दे दिया. जिससे उसका नाम सबके ऊपर लिखा गया, और उसे सुवर्णनिधिका लाभ हुआ. इत्यादि वार्ता प्रसिद्ध है. पश्चात् काष्ठमय चैत्यके स्थानमें शिलामय मंदिर तैयार होने की बधाई देनेवालेको मन्त्रीने सोनेकी बत्तीस जीमें बक्षिस दी. तदुपरांत उक्त जिनमंदिर विद्युत्पातसे भूमिशायी होगया, यह बात कहनेवालेको मन्त्रीने सुवर्णकी चौसठ जीमें दी. उसका यह कारण था कि, मन्त्रीने मनने यह विचार किया कि, "मैं जीवित रहते दूसरा उद्धार करनेको समर्थ हुआ हूं.” दूसरे जीर्णोद्धारमें दो करोड, सत्तानवे हजार द्रव्य खर्च हुआ. पूजाके लिये चौबीस ग्राम और चौबीस बगीचे दिये. वाग्भट्ट मन्त्रीके भाई आंबड मन्त्रीने भडौंचमें दुष्टव्यंतरीके उपद्रवको टालनेवाले श्रीहेमचन्द्रसूरिकी सहायतासे अट्ठारह हाथ ऊंचे शकुनिका बिहार नामक प्रासादका जीर्णोद्धार कराया. मल्लिकार्जुन राजाके भंडार सम्बन्धी बत्तीस धडी सुवर्णका बनाया हुआ कलश शकुनिका विहारके ऊपर चढाया. तथा सुवर्णदंड ध्वजाआदि दी. और मंगलदीपके समय पर
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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