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________________ ( ७५६ ) बत्तीस लाख द्रम्म याचक जनों को दिये. प्रथम जीर्णोद्धार करके पश्चातही नवीन जिनमंदिर बनवाना उचित है. इसीलिये संप्रतिराजाने भी प्रथम नव्वासी हजार जीर्णोद्धार करवाये, और नवीन जिनमंदिर तो केवल छत्तीस हजार बनवाये. इसी प्रकार कुमारपाल, वस्तुपालआदि धर्मिष्ठ लोगोंने भी नवीन जिनमंदिरोंकी अपेक्षा जीर्णोद्धार ही अधिक करवाये जिनकी संख्याआदिका वर्णन पूर्व में होगया है . 2 जिनमंदिर तैयार होनेके बाद विलम्ब न करके प्रतिमा स्थापन करना. श्रीहरिभद्रसूरिजीने कहा है कि, बुद्धिशाली मनुष्य ने जिनमंदिर में जिनबिंबकी शीघ्र प्रतिष्ठा करानी चाहिये. कारण कि ऐसा करनेसे अधिष्ठायक देवता तुरन्त वहां आ बसते हैं, और उस मंदिर की भविष्य में वृद्धिही होती जाती है. मंदिर में तांबे की कुंडिया, कलश, ओरसिया, दीपक आदि सर्वप्रकारकी सामग्री भी देना तथा शक्त्यनुसार मंदिरका भंडार स्थापित करे उसमें रोकड द्रव्य, तथा वाग बर्गाचे, वाडीआदि देना. राजा आदि जो मंदिर बनवानेवाले हों तो, उन्होंने तो भंडार में बहुत द्रव्य, तथा ग्राम, गोकुलआदि देना चाहिये. जैसे कि, मालवदेश जाकुडी प्रधानंन पूर्व में गिरनार पर्वत पर काष्ठमय चैत्यके स्थान में पाषाणमय जिनमंदिर बंधाना शुरु किया. और और दुर्भाग्यवश उसका स्वर्गवास होगवा. पश्चात्
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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