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________________ (७५४) जिनमंदिर बनवाने में करना पड़ता है, ऐसी शंका न करना , कारण कि, करानेवालेकी यतना पूर्वक प्रवृत्ति होनेसे उसमें दोष नहीं, तथा जिनमंदिर बनवानेसे नानाविध प्रतिमास्थापन, पूजन, संघसमागम, धर्मदेशनाकरण, समकित, व्रत आदिका अंगीकार,शासनकी प्रभावना,अनुमोदना इत्यादिक अनंतपुण्यकी प्राप्तिके कारण होनेसे उससे उत्तम परिणाम उत्पन्न होते हैं। कहा है कि-सूत्रोक्त विधीका ज्ञाता पुरुष यतना पूर्वक प्रवर्ते, और जो कदाचित उसमें कोई विराधना हो जाय, तो भी अध्यवसायकी शुद्धि होनेसे, उस विराधनासे निर्जराही हो जाती है । द्रव्यस्तव. आदिपर कुएका दृष्टांतआदि ऊपर कहा जा चुका है । जीर्णोद्धार करनेके कार्यमें भी पूर्ण उद्यम करना चाहिये । कहा है कि- जितना पुण्य नवीन जिनमंदिर बनवानेमें है, उससे आठगुणा पुण्य जीर्णोद्धार कराने में है । जीर्ण जिनमंदिर साफ करानेमें जितना पुण्य है, उतना नवीन बनवानेमें नहीं । कारण कि, नया मंदिर बनवाने में अनेक जीवोकी विराधना तथा " मेरा मंदिर" ऐसी प्रख्याति भी है। इसलिये उसमें जीर्णोद्धारके बराबर पुण्य नहीं। इसी प्रकार कहा है किजिनकल्पी साधु भी राजा, प्रधान, श्रेष्ठी, तथा कौटुम्बिकआदिको उपदेश करके जर्णि जिनमंदिर साफ करावे । जो पुरुष जीर्णहुए जिनमंदिरोंका भक्तिसे जीर्णोद्धार कराते हैं, वे भयंकर संसारसमुद्रमें पडेहुए अपनी आत्माका उद्धार करते हैं । यथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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