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से मुनिराज अपने यहां पधारें, तथा जिन-मंदिर समीप होवे, आसपास श्रावकोंकी बस्ती होवे ऐसे स्थानमें गृहस्थने रहना चाहिये. जहां बहुतसे विद्वान् लोग रहते हों, जहां शील प्राणसे भी अधिक प्यारा गिना जाता हो, और जहांके लोग सदैव धर्मिष्ठ रहते हों, वहां ही भले मनुष्योंने रहना चाहिये. कारण कि, सत्पुरुषोंकी संगति कल्याणकारी है. जिस नगरमें जिनमंदिर, सिद्धान्त ज्ञानी साधु और श्रावक होने तथा जल और ईंधन भी बहुत हो, वहीं नित्य रहना चाहिये.
तीनसौ जिनमंदिर तथा धर्मिष्ठ, सुशील और सुजान श्रावकआदिसे सुशोभित, अजमेरके समीप हर्षपुर नामक एक श्रेष्ठ नगर था. वहांके निवासी अट्ठारह हजार ब्राह्मण और उन के छत्तीस हजार शिष्य बडे २ श्रेष्ठी श्रीप्रियग्रंथमूरिके नगरमें पधारने पर प्रतिबोधको प्राप्त हुए. उत्तमस्थानमें रहनेसे धनवान्, गुणी और धर्मिष्ठ लोगोंका समागम होता है. और उससे धन, विवेक, विनय, विचार, आचार, उदारता, गंभीरता, धैर्य, प्रतिष्ठाआदि गुण तथा सर्वप्रकारसे धर्मकृत्य करनेमें कुशलता प्रायः विनाही प्रयत्नके प्राप्त होती है. यह बात अभी भी स्पष्ट दृष्टिमें आती है. इसलिये अत प्रान्त गामडे (ग्राम ) इत्यादि में धनप्राप्ति आदिसे सुखपूर्वक निर्वाह होता हो तो भी न रहना चाहिये. कहा है कि जहां जिन जिनमंदिर और संघका मुखकमल ये तीन वस्तुएं दृष्टि में नहीं आती, वैसेही जिन