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________________ (७३५) वचन सुनने में नहीं आता; वहां अपार संपदा हो तो भी वह किस कामकी ? जो तुझे मूर्खताकी आवश्यकता होवे तो तू गामडे में तीन दिन रह. कारण कि, वहां नया अध्ययन नहीं होता, और पूर्व में पढा हुआ हो वह भी विस्मरण होजाता है, ऐसा सुनते हैं कि किसी नगरका निवासी एक वणिक थोडेसे वणिकोंकी बसतिवाले एक देहातमें जाकर द्रव्यलाभके निमित्त रहने लगा. खेती तथा अन्य बहुतसे व्यापार कर उसने धन उपार्जन किया. इतने में उसके रहनेका घासका झोंपडा जल गया. इसी प्रकार बार २ धन उपार्जन करने पर भी किसी समय डाका, तो किसी समय दुष्काल, राजदंड आदिसे उसका धन चला गया. एक समय उस गांवके रहनेवाले चोरोंने किसी नगरमें डाका डाला, जिससे राजाने क्रोधित हो वह गांव जला दिया, और सुभटोंने श्रेष्ठीके पुत्रादिकोंको पकडा. तब श्रेष्ठी सुभटोंके साथ लडता हुआ मारा गया. कुग्रामवासका ऐसा फल होता है। रहनेका स्थान उचित हो, तो भी वहां स्वचक्र, परचक्र, विरोध, दुष्काल, महामारी, अतिवृष्टिआदि, प्रजाके साथ कलह, नगरका नाश इत्यादि उपद्रवसे अस्वस्थता उत्पन्न हुई हो तो, वह स्थान शीघ्र छोड देना चाहिये. ऐसा न करनेसे प्रायः धर्मार्थकामकी हानि होजाती है. जैसे यवनलोगोंने देहलीशहर नष्ट कर दिया, उस समय भयसे जिन्होंने देहली छोड दी और गुजरातआदिदेशों में निवास किया उन्होंने अपने धर्म,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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