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________________ (७३३) प्रकाश ६, जन्मकृत्य. (प्रथम द्वर जम्ममि वासठाणं, तिवग्गसिद्धीइ कारणं उचिअं॥ उचिअं विजागहणे, पाणिग्गहण च मित्ताई ॥१२॥ संक्षिप्तार्थः जन्ममें त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों की साधना हो सके ऐसा १ निवासस्थान, २ विद्या सम्पादन, ३ पाणिग्रहण और ४ मित्रादिक करना उचित है. ॥१२॥ विस्तारार्थ:--१ जन्मरूप बन्दीगृहमें प्रथम निवासस्थान उचित लेना. कैसा उचित सो विशेषणसे कहते हैं. जिससे त्रिवर्गकी अर्थात् धर्मार्थकामकी सिद्धि याने उत्पत्ति हो ऐसा, तात्पर्य यह है कि, जहां रहनेसे धर्म, अर्थ और काम सधे, वहां श्रावकने रहना चाहिये. अन्य जगह न रहना. कारण कि, वैसा करनेसे इसभवसे तथा परभवसे भ्रष्ट होनेकी सम्भावना है. कहा है कि- भीललोगोंकी पल्लीमें, चोरोंके स्थानमें, पहाडीलोगोंकी बस्तीमें और हिंसक तथा दुष्ट लोगोंका आश्रय करनेवाले लोगोंके पास अच्छे मनुष्योंने न रहना चाहिये. कारण कि कुसंगति सज्जनोंको एब लगानेवाली है. जिस स्थानमें रहने
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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