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" करेमि भंते ! सामाइअं " कहे. पश्चात् ये चार गाथाएं कहे :-- " अणुजाण परमगुरू गुणगणरयणेहिं भूमिअसरीरा ! ॥ बहुपडि पुन्ना पोरिसि, राईसंथारए ठामि ॥ १ ॥ अणुजाणह संथार, बाहुबहाणेण वामपासेण || कुक्कुडिपाय पसारण अतरंतु पमज्जर भूमिं ||२|| संकोइअ संडासं, उव्वते अ कायपडिहा || दव्वाई उबओगं, ऊसासनिरंभणाऽऽलोए ||३|| जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स हस्सिमाइ रयणीए | आहार मुवहि देहं सव्वं तिविहेण वोसिरिअं || ४ ||"
तत्पश्चात "चत्तारि मंगलं" इत्यादि भावनाका ध्यान करके नवकारका स्मरण करता हुआ चरवलाआदिसे शरीरको संथारे पर प्रमार्जन करके बाईं करवट से भुजा सिरहाने लेकर सोवे. जो शरीर चिंता को जाना पडे तो संधारा दूसरेको लगता हुआ रखकर “आवस्सई" कह कर प्रथम पडिलेहण कर कायचिन्ता करे. पश्चात् इरियावही कर गमनागमनकी आलोचना कर जघन्यसे भी तीन गाथाओंकी सज्झाय कर नवकारका स्मरण करता हुआ पूर्ववत् सो रहे . रात्रिके पिछले प्रहरमें जागृत होवे, तब इरिया ही प्रतिक्रमण करके कुसुमिणमिणका काउस्सग्ग करे. पश्चात् चैत्यवन्दन करके आचार्यआदिको वन्दना कर प्रतिक्रमणका समय होवे तब तक सज्झाय करे. तत्पश्चात् प्रतिक्रमण से लेकर पूर्ववत् मंडली में सज्झाय करने तक क्रिया करे.