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________________ (६७१) का प्रमार्जन करने का आदेश मांगे, पश्चात् श्रावकने मुंहपत्ति, आसन, पहिरनेके वस्त्रकी पडिलेहणा करना, और श्राविकाने मुंहपत्ति, आसन, घाघरा, कांचली और ओढे हुए वस्त्रकी पडिलेहणा करना. पश्चात् स्थापनाचार्यकी पडिलेहणा कर, पौषधशालाका प्रमार्जन कर, एक खमासमण दे उपधि मुंहपत्तिका पडिलेहण कर एक खमासमण दे मंडलीमें घुटनों पर बैठकर सज्झाय करे. पश्चात् वांदणा देकर पञ्चखान करे. दो खमासमण देकर उपधि पडिलेहणाका आदेश मांगे. पश्चात् वस्त्र, कम्बली आदिकी पडिलेहणा करे । जो उपवास किया होवे तो सर्व उपधिके अन्त में पहिरनेका वस्त्र पडिलेहे. श्राविका तो प्रभातकी भांति उपधिका पडिलेहण करे. सन्ध्याकी कालवेला होवे, तब शय्याके अन्दर तथा बाहिर बारह बारह बार मूत्र तथा स्थंडिलकी भूमिका पडिलेहण करले. पश्चात् देवसी प्रतिक्रमण करके योग होवे तो साधुकी सेवा कर एक खमासमण दे पोरिसी हो तब तक सज्झाय करे. पोरिसी पूर्ण होने पर एक खमासमण दे "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बहुपडिपुन्ना पोरिसी राइसंथारए ठामि" ऐसा कहे. पश्चात् देव वांदी, मलमूत्रकी शंका होवे तो तपासकर सर्व बाहर उपधिका पडिलेहण कर ले. घुटनों पर संथारेका उत्तरपट डालकर जहां पैर रखना हो वहांकी भूमिका प्रमार्जन करके धीरे धीरे बिछावे पश्चात् "महाराज आदेश आपो" यह कहता हुआ संथारे पर बैठकर नवकारके अन्तरसे तीन बार
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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