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________________ (६२९) करनेमें यतना और दृढता रखनी चाहिये । प्रतिक्रमणके १ देवसी, २ राइ, ३ पक्षी, ४ चौमासी और ५ संवत्सरी ऐसे पांच भेद हैं। इनका समय उत्सर्गमार्गसे इस प्रकार कहा है कि--गीतार्थपुरुष सूर्यबिंबका अर्धभाग अस्त होवे तब (देवसिक प्रतिक्रमण) सूत्र कहते हैं। यह प्रामागिक वचन है, इसलिये देवसीप्रतिक्रमणका समय सूर्यका अर्धअस्त है। राइप्रतिक्रमणका काल इस प्रकार है:- आचार्य आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) करनेका समय होता है, तब निद्रा त्यागते हैं, और आवश्यक इस रीतिसे करते हैं कि जिससे दश पडिलेहणा करते ही मूर्योदय हो जाय । अपवादमार्गसे तो देवसीप्रतिक्रमण दिनके तीसरे प्रहरसे अर्धरात्रितक किया जाता है, योगशास्त्रकी वृत्तिमें तो देवसीप्रतिक्रमण मध्यान्हसे लेकर अर्धरात्रितक किया जाता है ऐसा कहा है , इसीप्रकार राइप्रतिक्रमण मध्यरात्रिसे लेकर मध्याह्न तक किया जाता है, कहा है कि- “राइप्रतिक्रमण आवश्यकचूर्णिके अभिप्रायानुसार उग्घाडपोरिसी तक किया जाता है, और व्यवहारसूत्रके अभिप्रायले पुरिमड्ड (मध्याह्न) तक किया जाता है।" पाक्षिकप्रतिक्रमण पखवाडे के अंतमें, चातुर्मासिक चौमासे अंतमें और सांवत्सरिक वर्षके अंतमें किया जाता है। शंकाः-पक्खी (पाक्षिक ) प्रतिक्रमण चतुर्दशीको किया जाता है कि अमावास्या अथवा पूर्णिमाको ?
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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