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________________ (६२८) और भी उसी सूत्रमें कहा है कि, जिस हेतुसे साधु और श्रावकको रात्रि तथा दिवसके अंतभागमें आवश्यक करना पडता है अतः प्रतिक्रमणको आवश्यक कहते हैं । इसलिये साधुकी तरह श्रावकने भी श्रीसुधर्मास्वामीआदि आचार्यकी परंपरासे चलता आया हुआ प्रतिक्रमण मुख्यतः दोनों समय करना चाहिये । कारण कि, उससे दिनमें तथा रात्रिमें किये हुए पापोंकी शुद्धि होकर अपार फल प्राप्त होता है। कहा है कि, जीवप्रदेशमेंसे पातकोंको निकाल देनेवाला, कषायरूप भावशत्रुको जीतनेवाला, पुण्यको उत्पन्न करनेवाला और मुक्तिका कारण ऐसा प्रतिक्रमण नित्य दो बार करना चाहिये । प्रतिक्रमण ऊपर एक ऐसा दृष्टांत सुना जाता है कि दिल्लीमें देवसीराइप्रतिक्रमणका अभिग्रह पालनेवाला एक श्रावक रहता था। राजव्यापारमें कुछ अपराधमें आजानेसे बादशाहने उसके सर्वांगमें बेडियां डालकर उसे बंदीगृहमें डाला. उस दिन लंघन हुआ था, तो भी उसे संध्यासमय प्रतिक्रमण करने के लिये पहरेदारोंको एक टंक सुवर्ण देना कबूल कर दो घडी हाथ छुडाये, और प्रतिक्रमण किया। इस प्रकार एकमासमें उसने साठ टंक सुवर्ण प्रतिक्रमणके निमित्त दिये । नियम पालनमें उसकी ऐसी दृढता जानकर बादशाह चकित होगया, और उसने उसे बंदीगृहसे मुक्त कर सिरोपाव दिया तथा पूर्वकी भांति उसका विशेष सन्मान किया। इस तरह प्रतिक्रमण
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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