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होवे तो उसे मिटावे और व्याधि न होवे तो सर्वांगको पुष्ट करे तथा सुख व बलकी वृद्धि करे तथा भविष्यमें होनेवाली व्याधिको रोके. उपरोक्त तीनों प्रकार में प्रतिक्रमण तीसरी रसायन-औषधिके समान है, जिससे वह अतिचार लगे हों तो उनकी शुद्धि करता है, और न लगे हों तो चारित्रधर्मकी पुष्टि करता है.
शंका-आवश्यकचूर्णिमें कही हुई सामायिक विधि ही श्रावकका प्रतिक्रमण है, कारण कि, छः प्रकारका प्रतिक्रमण दो बार अवश्य करना यह सब इसमें आ जाता है । यथाः- प्रथम एक सामायिक कर, पश्चात् क्रमसे २ इरियावहीं, ३ कायोत्सर्ग, ४ चोवीसत्थो, ५ वंदन और ६ पच्चक्खान करनेसे छः आवश्यक पूरे होते हैं। इसी प्रकार “सामाइय. मुभयसंझं" ऐसा वचन है, जिससे प्रातः व संध्याको करना ऐसा भी निश्चय होता है।
समाधान-उपरोक्त शंका ठीक नहीं । कारण कि, सामायिकविधिमें छः आवश्यक और कालनियम सिद्ध नहीं होते । वे इस प्रकार-तुम्हारे (शंकाकारके ) अभिप्रायके अनुसार भी चूर्णिकारने सामायिक, इरियावही और वंदन ये तीन ही प्रकट दिखाये हैं; शेष नहीं दिखाये । उसमें भी इरियावही प्रतिक्रमण कहा है, वह गमनागमन संबंधी है, परंतु आवश्यकके चौथे अध्ययनरूप नहीं। कारण कि, गमनागमन तथा