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________________ (६२५) प्रकाश २, रात्रिकृत्य. दिनकृत्यके अनन्तर श्रावक मुनिराजके पास अथवा पौषधशालाआदिमें जाकर यतनासे पूंज करके सामायिकआदि षडावश्यकरूप प्रतिक्रमण विधि सहित करे, उसमें स्थापनाचार्यकी स्थापना, मुहपत्ति, चरवला आदि धर्मोपकरण ग्रहण करना तथा सामायिक करना इत्यादि, इसकी विधिका वर्णन मूलग्रंथकार रचित श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्तिमें किया है. श्रावकने सम्यक्त्वादिकके सर्वातिचारकी शुद्धिके निमित्त तथा भद्रकपुरुषने अभ्यासादिकके निमित्त प्रतिदिन दो बार अवश्य प्रतिक्रमण वैद्यके तीसरे रसायन-औषधके समान है, अतएव अतिचार न लगे हों तो भी श्रावकने यह अवश्य करना चाहिये. सिद्धान्तमें कहा है कि प्रथम और अंतिम तीर्थंकरोंके शासनमें प्रतिक्रमण प्रतिदिन करनेका आवश्यक है, और मध्यके बाईस तीर्थंकरोंके शासनमें कारण होवे तो प्रतिक्रमण कहा है, 'कारण होय तो' याने मध्यमतीर्थकरके कालमे अतिचार लगा हो तो मध्यान्ह ही को भी प्रतिक्रमण करे, और न लगा हो तो सुबह शामभी न करे. औषधि तीन प्रकारकी कही है, यथाः-१ प्रथम औषधि व्याधि होवे तो मिटावे और न होवे तो नवीन उत्पन्न करे. २ दूसरी औषधि व्याधि होवे तो मिटावे, परन्तु न होवे तो नई पैदा न करे. ३ तीसरी औषधि रसायन अर्थात् पूर्व व्याधि
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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