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________________ (६०८) मानीपुरुष अपनी मानहानिको मृत्युसे भी बदतर अनिष्ट मानते हैं. ज्ञान, दर्शन और चारित्र जैसे भव्यजीवोंको आ मिलते हैं, वैसे नित्य मित्रता रखनेवाले तीनों मित्र श्रीमारको आमिले. कहा है कि- संदेशा भेजनेके समय दूतकी, संकट आनेपर बान्धवोंकी, आपत्ति आपडने पर मित्रोंकी और धन चला जावे तब स्त्रीकी परीक्षा की जाती है. मार्ग में जंगल आया तब वे चारों व्यक्ति एक राहगारों (काफला) के दलके साथ चल रहे थे, परन्तु कर्मकी विचित्रगतिसे उनका साथ छूटजानेसे मार्ग भूल गये. तीनदिन तक क्षुधातृषासे पीडित हुए इधर उधर भटकते एक गांवमें आये, और भोजनकी तैयारी करने लगे. इतने में जिनका भव थोडा बाकी रहा है ऐसे एक जिनकल्पि मुनिराज उनके पास भिक्षा लेने तथा उनको उत्कृष्ट वैभव देनेके लिये आये. राजकुमार भद्रकस्वभाव था इससे उसने उच्च. भावसे मुनिराजको भिक्षा दी, और भोगफल कर्म उपार्जित किया. मुनिराजको भिक्षादेनेसे दो मित्रोंको हर्ष हुआ. उन्होंने मन, वचन, कायासे धर्मका अनुमोदन किया. ठीक ही है, समानमित्रोंने समान ही पुण्य उपार्जन करना उचित है. सब दे दो, ऐसा योग फिर हमको कब मिलेगा ?' इस प्रकार दोनों मित्रोंने अपनी अधिक श्रद्धा बटानेके लिये कपट वचन कहे. क्षत्रियपुत्रका स्वभाव तुच्छ था, इससे वह दानके समय बोला कि, हे कुमार ! मुझे बडी भूख लगी है अतएव कुछ तो
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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