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________________ (६०९) रख लो. इस प्रकार वृथा दानमें अंतराय करके भोगान्तराय कर्म बांधा. पश्चात् राजाके बुलानेसे वे अपने २ स्थानको गये और हर्षित हुए. उन चारोंको क्रमशः राजकुमारको राज्य, श्रेष्ठिपुत्रको श्रेष्ठिपद, मंत्रीपुत्रको मंत्रीपद और क्षत्रियपुत्रको सेनानायकका पद मिला. वे अपना २ पद भोगकर क्रमशः मृत्युको प्राप्त हुए. सत्पात्रदानके प्रभावसे श्रीसारकुमार रत्नसार हुआ. श्रीष्ठपुत्र और मंत्रीपुत्र इसकी स्त्रियां हुई. कारण कि कपट करनेसे स्त्रीभव प्राप्त होता है क्षत्रियपुत्र तोता हुआ. कारण कि दानमें अन्तराय करनेसे तिर्यंचपन प्राप्त होता है. तोतेमें जो बडी चतुरता है, वह पूर्वभवमें ज्ञानको बहुत मान दिया था उसका कारण है. श्रीसारका छुडाया हुआ चोर तापसत्रत पालनकर इसे सहायता करनेवाला चन्द्रचूड देवता हुआ. राजाआदि लोगोंने मुनिराजके ये वचन सुनकर पात्रदानको आदरणीय मान सम्यक्रीतिसे जैनधर्मका पालन करना अंगीकार किया. सत्य ही है, तत्वका ज्ञान होजानेपर कौन आलस्य करता है ? सत्पुरुषोंका स्वभाव जगतमें सूर्यके समान शोभायमान होता है. कारण कि, सूर्य जैसे अंधकारका नाश कर लोगोंको सन्मार्गसे लगाता है, वैसे ही सत्पुरुष भी अज्ञानान्धकारको दूर करके लोगोंको सन्मार्गसे लगाते हैं. अत्यन्त पुण्यशाली रत्नसारकुमारने अपनी दो स्त्रियों के साथ चिरकाल उत्कृष्ट सुख भोगे. अपने भाग्य ही से इच्छित द्रव्य
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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