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________________ (६०७) तीसरा क्षत्रिय पुत्र ऐसे राजपुत्रके तीन मित्र थे। धर्म, अर्थ और कामसें जैसे उत्साह शोभता है, वैसे वह राजपुत्र तीनोंमित्रोंसे मूर्तिमंत उत्साहके समान शोभता था | चारोंमें जो क्षत्रिय पुत्र था वह शेष तीनोंमित्रोंका कलाकौशल देखकर अपने आपकी निंदा किया करता था और ज्ञानको मान देता था। एकसमय रानीके महल में किसी चोरने सेंध लगाई। सुभटोंने उसे माल सहित पकड लिया । क्रोध पाये हुए राजाने उसे शूली पर चढाने का आदेश किया । जल्लाद लोग उसे लेजाने लगे; इतनेमें दयालु श्रीसारकुमारने हरिणीकी भांति भयभीत दृष्टिसे इधर उधर देखते उस चोरको देखा और यह कह कर कि “ मेरी माताका द्रव्य हरण करनेवाला यह चोर है, इसलिये मैं स्वयं इसका वध करूंगा।" श्रीसार जल्लादोंके पाससे उसे अपने अधिकारमें ले नगरीके बाहर गया व उदार व दयालु राजकुमारने उसे " फिर कभी चोरी मत करना' यह कह चुपचाप छोड दिया । सत्पुरुषोंकी अपराधी मनुष्य पर भी अद्भुत दया होती है । मनुष्योंके सब कहीं पांच मित्र होते हैं तो पांच शत्रु भी होते हैं । यही दशा कुमारकी भी थी । इससे किसीने चोरके छोड देनेकी बात राजाके कान में डाली । “आज्ञाभंग करना यह राजाका बिना शस्त्रका वध कहलाता है । " ऐसा होनसे रुष्ट हुए राजाने श्रीसारका बहुत तिरस्कार किया जिससे दुःखित व क्रोधित हो कुमार नगरसे बाहर निकल गया ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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