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(६०६) कुमारकी महिमा वर्णनकर अपने स्थानको गया। इधर रत्नसारने भी किसी प्रकार राजाकी आज्ञा ले दोनों स्त्रियोंके साथ उसे अपने नगरकी ओर प्रयाण किया। सामन्त, मंत्रीआदि राज. पुरुष कुमारके साथ उसे पहुंचाने आये । जिससे मार्गमें सभी पुरुष कुमारको राजपुत्र समझने लगे। मार्गमें आये हुए राजा
ओंने स्थान २ पर उसका सत्कार किया । क्रमशः कितने ही दिनके बाद वह रत्नविशालानगरीमें आ पहुंचा। राजा समरसिंह भी इसकी ऋद्धिका विस्तार देखकर बहुतसे श्रेष्ठियोंके साथ अगवानीको आया व बडे समारम्भसे कुमारका नगरीमें प्रवेश कराया। पूर्वपुण्यकी पटुता कैसी विलक्षण है ? पारस्परिक आदर सत्कारादि होजानेके अनन्तर चतुर टोतेने रा. जादिके सन्मुख संपुर्ण वृत्तान्त कह सुनाया । जिसे सुन उन सबको बडा चमत्कार उत्पन हुआ, व कुमारकी प्रशंसा करने लगे। ___एक समय उद्यानमें ' विद्यानन्द' नामक आचार्यका समवसरण हुआ। राजा रत्नसारकुमार आदि हर्षपूर्वक उनको वंदना करने गये । आचार्यमहाराजने उचित उपदेश दिया । पश्चात् राजाने आचार्यमहाराजसे रत्नसारकुमारका पूर्व भव पुछा, तब चतुर्ज्ञानी विद्यानन्दाचार्य इस प्रकार कहने लगे
" हे राजन् ! राजपुरनगरमें धनसे संपूर्ण और सुन्दर श्रीसार नामक राजपुत्र था । एक श्रेष्ठिपुत्र, दूसरा मंत्रीपुत्र और