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________________ (५८०) करे ? औचित्यादि दान, ऋण उतारना, शर्त, निश्चित वेतन लेना, धर्म और रोग अथवा शत्रुका नाश इतने कार्य करने में बिलकुल समय न खोना चाहिये । क्रोधका गुस्सा आया होवे, नदी पूरमें प्रवेश करना होवे, कोई पापकर्म करना होवे, अजीर्ण पर भोजन करना होवे और किसी भयके स्थान में जाना हो तो समय बिताना यही श्रेष्ठ है याने इतने कार्य करना होवें तो आजका कल पर रख छोडना चाहिये । कुमारके विनोद वचन सुन तिलकमंजरीके मनमें लज्जा उत्पन्न हुई, शरीर कांपने लगा, पसीना छूट गया तथा शरीर रोमांचित होगया। वह स्त्रियोंके लीलाविलास प्रकट करने लगी तथा कामविकारसे अतिपीडित होगई तो भी उसने धैर्य धरकर कहा - "हमारे ऊपर आपने महान् उपकार किये हैं अतएव मैं समझती हूं कि सर्वस्व आपको अर्पण करनेके योग्य है । इसलिये हे स्वामिन् ! मैं आपको यह एक वस्तुदानका निमित्तमात्र देती हूं, ऐसा समझिये । " ऐसा कह हर्षित तिलकमंजरीने, मानो अपना साक्षात् मन हो ऐसा मनोहर मोतीका हार कुमारके गलेमें पहिरा दिया व कुमारने भी सादर उसे स्वीकार किया। अपने इष्टमनुष्य की दी हुई वस्तु स्वीकारने को प्रेरणा करनेवाली प्रीति ही होती है । अस्तु, तिलकमंजरीने अपने वचन के अनुसार तोते की भी कमलपुष्पों से पूजा की । उस समय उचितआचरणमें निपुण चन्द्रचूडने कहा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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