SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५५४) पार युक्त साक्षात् लक्ष्मी व सरस्वती हो. शोकको समूल नाश करनेवाले अनेक अशोकवृक्ष जिसमें सर्वत्र व्याप्त हैं ऐसे अशोकवन नामक उद्यानमें वे राजकन्याएं आ पहुंची. अन्दरके बिन्दुके समान भ्रमरोंसे युक्त होनेके कारण नेत्रोंके समान दीखते हुए पुरुषोंके साथ मानो प्रीतिहीसे नेत्रमिलाप करनेवाली उक्त दोनों राजकन्याएं उद्यान देखने लगी. तरुणी अशोकमंजरी क्रीडा करनेवाली स्त्रीके चित्तको उत्सुक करनेवाली, रक्त अशोकवृक्षकी शाखा में बंधे हुए हिंडोले पर चढी. उस पर दृढ रखनेवाली सुन्दरी तिलकमंजरीने प्रथम हिंडोलेको झूले दिये. स्त्रीके वशमें पड़ा हुआ पति जैसे उसके पादप्रहारसे हर्षित हो शरीर पर विकसित रोमांच धारण करता है, वैसेही अशोकमंजरीके पादप्रहारसे सन्तुष्ट हुआ अशोकवृक्ष विकसितपुष्पोंके मिससे मानो अपनी रोमावली विकसित करने लगा. आश्चर्यकी बात यह है कि, हिंडोले पर बैठकर झूलनेवाली अशोकमंजरी तरुणपुरुषोंके मनमें नानाप्रकारके विकार उत्पन्न कर उनके मन और नेत्रोंको भी हिंडोले पर चढे हों उस भांति झुलाने लगी. उस समय रुमझुमशब्द करनेवाले अशोकमंजरीके रत्नजडित पैंजन आदि आभूषण मानो टूटनेके भयहीसे आक्रोश करने लगे, ऐसा भास होता था. क्रीडारसमें निमग्न हुई अशोकमंजरीके तरफ तरुण पुरुष पुलकित होकर, और तरुणस्त्रियां मनमें ईर्ष्या लाकर क्षणमात्र
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy