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देख रही थीं, इतने में दुर्भाग्यवश प्रचंड पवनके वेगसे अकस्मात् हिंडोला टूट गया और उसके साथ ही लोगोंके मनका क्रीडारस भी नष्ट होगया । शरीरमेंकी नाडी टूटनेसे जैसे लोग आकुलव्याकुल होते हैं वैसे ही हिंडोलेके टूटते ही सब लोग व्याकुल हो हाहाकार करने लगे । इतने ही में मानो आकाशमें कौतुकसे गमन करती होय इस तरह अशोकमंजरी हिंडोले सहित वेगसे आकाशमें जाती हुई दृष्टिमें आई । तब लोग उच्चस्वरसे कोलाहल करने लगे कि, " हाय हाय ! कोई यमके समान अदृश्यपुरुष इसको हरण किये जारहा है !!" प्रचंड मनुष्य और बाणोंके समूहको धारण करनेवाले, शत्रुको सन्मुख न टिकने देनेवाले शूरवीर पुरुष झडपसे वहां आये व खडे रह कर ऊंचीदृष्टिसे अशोकमंजरीका हरण देख रहे थे, परन्तु वे कुछ भी न कर सके । ठीक ही है अदृश्य अपराधीको कौन शिक्षा कर सकता है ?
राजा कनकध्वज कानमें शूल उत्पन्न करे ऐसा कन्याका हरण सुनकर क्षणमात्र वज्रप्रहारसे पीडित मनुष्यकी भांति अतिदुःखित हुआ। " हे वत्से ! तू कहां गई ? तू मुझे दर्शन क्यों नहीं देती ? हे शुद्धचित्ते ! क्या तूने पूर्वका अपार प्रेम छोड दिया ? हाय हाय ! !” राजा विरहातुर हो इस प्रकार शोक कर रहा था, कि इतने में एक सेवकने आकर कहा-"हाय हाय ! हे स्वामिन् ! अशोकमंजरीके शोकसे जर्जरित तिलक