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________________ (५५३) कन्या चाहे कितनीही श्रेष्ठ हो, तो भी वह अवश्य अपने पिताको दुःखदायक होती है ! कहा है कि--पिताको कन्याके उत्पन्न होतेही " कन्या हुई" ऐसी भारी चिन्ता मनमें रहती है. क्रमशः " अब वह किसको देना ?" ऐसी चिन्ता रहती है. लग्न करनेके अनन्तर " पति के घर सुखसे रहेगी या नहीं ?" यह चिन्ता उत्पन्न होती है, इसलिये कन्याका पिता होना बहुत ही कष्टदायक है, इसमें शक नहीं. इतनेमें कामदेव राजाकी महिमा जगत्में अतिशय प्रसिद्ध करनेके हेतु अपनी सम्पूर्ण ऋद्धिको साथ ले वसन्तऋतु वनके अन्दर उतरा. वह ऐसा लगता था मानो जिसका अहंकार सर्वत्र फल रहा है, ऐसे कामदेवराजाका तीनों लोकोंको जीतनेसे उत्पन्न हुआ यश मनोहर तीन गीतोंसे गा रहा है. तीनों गीतोंमें प्रथम गीत है मलयपर्वतके ऊपरसे आनेवाले पवनकी सनसनाहट, दूसरा भ्रमरोकी झंकार व तीसरा है कोकिलपक्षियोंका सुमधुर शब्द, उस समय क्रीडारससे अत्यन्त उत्सुक हुई वे दोनों राजकन्याएं मनका आकर्षण होनेसे हर्षित हो वनमें गई. कोई हाथीके बच्चे पर, तो कोई घोडे पर, कोई मिश्रजातिके घोडे पर, तो कोई पालखी अथवा रथआदिमें इस प्रकार भांति भांतिके वाहन में बैठकर बहुत सखियां उनके साथ निकली. पालखीमें सुखपूर्वक बैठी हुई सखियोंके परिवारसे शोभायमान दोनों राजकन्याएं ऐसी शोभा दे रही थीं कि मानो विमानमें आरूढ व देवियोंके परि.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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