SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५५२) सहजगिराण सहसोविराण सहहरिसमोअवंताणं ॥ नयणाण व धन्नाणं, आजम्मं निचलं पिम्मं ॥१॥ अर्थः-साथमें जगनेवाली, साथमें सोनेवाली ( बंद होने वाली), साथमें हर्षित होनेवाली और साथमें शोक करनेवाली दो आंखोंकी भांति जन्मसे लेकर निश्चलप्रेमको धारण करने वालोंको धन्य है. ॥१॥ जब वे कन्याएं युवावस्थामें आई तब राजा विचार करने लगा कि, " इनको इन्हींके समान वर कौन मिलेगा? रति प्रीतिका जैसे एक कामदेव वर है, वैसे इन दोनोंके लिये एकही वरकी शोध करना चाहिये । पृथक् २ वर जो कदाचित् इनको मिले तो दोनोंको परस्पर विरह होनेसे प्राणान्त कष्ट होगा. इस जगत्में इनके लिये कौनसा भाग्यशाली वर उचित है ? एक कल्पलताको धारण कर सके ऐसा एक भी कल्पवृक्ष नहीं, तो दोनोंको धारण करनेवाला कहांसे मिल सकेगा? जगत्में इनमेंसे एकको भी ग्रहण करने योग्य वर नहीं है. हाय हाय ! हे कनकध्वज ! तू इन कन्याओंका पिता होकर अब क्या करेगा ? योग्य वरका लाभ न होनेसे निराधार कल्पलताके समान इन लोकोत्तर निर्भागी कन्याओंकी क्या गति होगी?" इस प्रकार अतिशयीचन्ताके तापसे संतप्त कनकध्वज राजा महीनोंको वर्षके समान और वर्षोंको युगसमान व्यतीत करने लगा. शंकरकी दृष्टि सामनेके मनुष्यको जैसे कष्टकारी होती है, वैसेही
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy