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________________ (५२१) धन कमाया जिससे वह भारी श्रेष्ठी होगया । धर्मका माहात्म्य इसी भवमें कितना स्पष्ट दृष्टि आता है ? एक दिन कर्मवश धनमित्र अकेला सुमित्रश्रेष्ठीके घर गया। सुमित्र श्रेष्ठी करोडमूल्यका एक रत्नका हार बाहर रखकर कार्यवश घरमें गया व शीघ्रही वापस आया। इतने ही में रत्नका हार अदृश्य हो गया । सुमित्र यह समझकर कि “ यहां धनमित्र के बिना और कोई नहीं था अतएव इसीने हार लिया है। " उसे राजसभामें ले गया । धनमित्र जिनप्रतिमाके अधिष्ठायक समकितीदेवताका काउस्सग्ग कर प्रतिज्ञा करने लगा, इतने ही में सुमित्रकी कटीहीमेंसे वह रत्नका हार निकला । जिससे सब लोगोंको बडा आश्चर्य हुआ । इस विषयमें ज्ञानीको पूछने पर उन्होंने कहा कि । “ गंगदत्तनामका गृहपति और मगधानामक उसकी भार्या थी । गंगदत्तने अपने श्रेष्ठीकी स्त्रीका एक लक्ष्य मूल्यवाला रत्न गुप्तरीतिसे ग्रहण किया । श्रेष्ठीकी स्त्रीने कई बार मांगा परन्तु अपनी स्त्रीमें मोह होनेसे गंगदत्तने उस पर "तेर संबंधियोंहाने उक्त रत्न चुराया है।" यह कहकर झूठा आरोप लगाया। जिससे श्रेष्ठीकी स्त्री बहुत खिन्न होकर तपस्विनी होगई और मरकर व्यंतर हुई । मगधा मरकर सुमित्र हुआ और गंगदत्त मरकर धनमित्र हुआ । उस व्यंतरने क्रोधसे सुमित्रके आठ पुत्रोंको मार डाला व अभी रत्न हार हरण किया । आगे भी सर्वस्व हरण करेगा व बहुतसे भव तक वैर
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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