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________________ (५२२) का बदला देगा । अरेरे ! बैरका परिणाम कैसा अपार व असह्य है ? आरोप लगानेसे धनमित्रके सिरपर आरोप आया । धनमित्रके पुण्यसे आकर्षित हो सम्यग्दृष्टिदेवताने व्यंतरसे बलात्कार पूर्वक वह हार छुडाया । " ज्ञानीके ये वचन सुनकर संवेग पाये हुए राजा तथा धनमित्रने राजपुत्रको गादी पर बिठा दीक्षा ले सिद्धि प्राप्त की .........इत्यादि (मूल गाथा.) मज्झण्हे जिणपूआ, सुपत्तदाणाइजुत्ति भुंजित्ता॥ पच्चक्खाइ अ गीअत्थ अंतिए कुणइ सज्झायं ॥८॥ अर्थः- दुपहरके समय पूर्वोक्तविधिसे उत्तम कमोदके चावल इत्यादिसे तैयार की हुई सम्पूर्ण रसोई भगवान्के सन्मुख धरके दूसरी बार पूजाकर, तथा सुपात्रको दानआंदि देनेकी युक्ति न भूलते स्वयं भोजन करके गीतार्थगुरुके पास जाना और वहां पच्चखान व स्वाध्याय करना । मध्यान्हकी पूजा तथा भौजनका काल नियमित नहीं । जव तीव्र क्षुधा लगे वही भोजनका काल समझनेकी रूढि है । अतएव मध्यान्हके पहिले भी ग्रहण किया हुआ पच्चखान पालकर, देवपूजा करके भोजन करे तो दोष नहीं। वैद्यशास्त्रमें तो ऐसा कहा है कि
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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