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________________ ( ५२० ) 1 Arasa स्वीकार किया तथा रात्रि और दिवसके प्रथमप्रहर में धर्माचरणका अभिग्रह ग्रहण किया । पश्चात् वह एक श्रावक के घर ठहरा । प्रभातकाल में मालीके साथ बागमें पुष्प एकत्रित करके वह घरदेरासर में भगवान की परमभक्तिसे पूजा करने लगा, तथा दूसरे, तीसरे आदि प्रहर में देशविरुद्ध, राजविरुद्ध, आदिको छोड व्यवहारशुद्धि तथा उचितआचरणसे शास्त्रोक्त रीति के अनुसार व्यापार करने लगा, जिससे उसको सुखपूर्वक निर्वाहके योग्य द्रव्य मिलने लगा और ज्यों २ उसकी धर्म में स्थिरता हुई त्यो २ उसको अधिकाधिक धन मिलने लगा और धर्मकरणी में व्यय भी अधिक होने लगा । क्रमशः वह अलग घरमें रहने लगा तथा एक श्रेष्ठीकी कन्यासे विवाह भी कर लिया. एक समय गायका समूह जंगलमें जानेको निकला तब वह गुड, तेल आदि बेचने गया । गायोंका गुवाल अंगारे समझकर एक सुवर्णका भंडार फेंक रहा था । उसे देख धनमित्रने कहा - " इस सुवर्णको क्यों फेंक रहे हो ? " ग्वालने उत्तर दिया कि " पूर्व भी हमारे पिताजीने 'यह स्वर्ण है ' ऐसा कहकर हमको ठगा, अब तूभी हमको ठगने आया है " धनमित्रने कहा - " मैं असत्य नहीं कहता । " उसने कहा, ऐसा हो तो हमको गुड आदि वस्तु देकर यह सुवर्णआदि तू ही ले जा । " धनमित्रने वैसाही किया । जिससे उसे तीस हजार स्वर्णमुद्राएं मिलीं तथा अन्य भी उसने बहुतसा 46
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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