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होगया । तरुण होगया तथापि उसे कन्या न मिली । तब लज्जित होकर वह धनोपार्जन करने गया । भूमिमें गडा हुआ धन निकालने के उपाय, किमिया, सिद्धरस, मंत्र, जलकी तथा स्थलकी मुसाफिरी, भांति भांतिके व्यापार, राजादिककी सेवा इत्यादि अनेक उपाय किये तो भी उसे धन प्राप्ति न हुई जिससे अतिशय उद्विग्र हो उसने गजपुरनगर में केवली भगवान्को अपना पूर्व भव पूछा । उन्होंने कहा " विजयपुर नगर में एक अत्यन्त कृपण गंगदत्त नामक गृहपति रहता था | वह बडा मत्सरी था तथा किसीको दान मिलता होता अथवा किसीको लाभ होता तो उसमें भी अंतराय करता था। एकसमय सुन्दर नामक श्रावक उसे मुनिराजके पास लेगया । उसने कुछ भावसे तथा कुछ दाक्षिण्यतासे प्रतिदिन चैत्यवंदन पूजाआदि धर्मकृत्य करना स्वीकार किया । कृपण होनेके कारण पूजाआदि करनेमें वह आलस्य करता था, परन्तु चैत्यवंदन करनेके अभिग्रहका उसने बराबर पालन किया। उस पुण्यसे हे धनमित्र ! तू धनवान् वणिक्का पुत्र हुआ और हमको मिला । तथा पूर्वभव में किये हुए पापसे महादरिद्री और दुःखी हुआ । जिस २ रीतिसे कर्म किये जाते हैं, वही उनकी अपेक्षा सहस्रगुणा भोगना पडता है, यह विचार कर उचितआचरण से रहना चाहिये ।
केवलीके ऐसे वचनों से प्रतिबोध पाये हुए धनमित्रने