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________________ (५१६) और स्वयं निर्गुणी होते गुणीपुरुषसे द्वेष करे,ये तीनों व्यक्ति जगत्में काष्ठके तुल्य हैं। मातापिताका पोषण न करनेवाला,क्रियाके उद्देश्यसे याचना करनेवाला और मृतपुरुषका शय्यादान लेनेवाला इन तीनोंको पुनः मनुष्य-भव दुर्लभ है. अक्षयलक्ष्मीके इच्छुक मनुष्यने बालिष्ट पुरुषके सपाटेमें आते समय बेतके समान नम्र होजाना चाहिये, सर्पकी भांति कभी साम्हना नहीं करना. बेतकी भांति नम्र रहनेवाला मनुष्य समय पाकर पुनः लक्ष्मी पाता है, परन्तु सर्पकी भांति साम्हना करनेवाला मनुष्य केवल मृत्यु. पात्र हो सकता है, बुद्धिशालीमनुष्योंने समय पर कछुवेकी भांति अंगोपांग संकुचित कर ताडना सहन करना व अपना समय आने पर काले सांपकी भांति साम्हना करना चाहिये. ऐक्यतासे रहनेवाले लोग चाहे कितनेही तुच्छ हों परन्तु उनको बलिष्ट लोग सता नहीं सकते; देखो, साम्हनेका पवन होवे तो भी वह एक जत्थेमें रही हुई लताओंको तनिक भी बाधा नहीं पहुंचा सकता. विद्वान् लोग शत्रुको प्रथम बढाकर पश्चात् उस. का समूल नाश करते हैं. कारण कि प्रथम गुड खाकर भली भांति बढाया हुआ कफ सुखसे बाहर निकाला जा सकता है। जैसे समुद्र वडवानलको नियमित जल देता है, वैसेही बुद्धिशाली पुरुष सर्वस्व हरण करनेको समर्थ शत्रुको अल्प २ दान देकर प्रसन्न करते हैं. लोग पैरमें घुसे हुए कांटेको जैसे हाथमेंके कांटेसे निकाल डालते हैं, वैसेही चतुरपुरुष एक तीक्ष्णशत्रुसे दूसरे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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