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दौडना, पात्रके टूटनेसे प्रायः कलह होता है, और खाट टूटे तो वाहनका क्षय होता है. जहां श्वान और कुक्कुट ( मुर्गा) बसता हो वहां पितृ अपना पिंड नहीं ग्रहण करते. गृहस्थने तैयार किये हुए अन्नसे प्रथम सुवासिनी स्त्री, गर्भिणी, वृद्ध, बालक, रोगी इनको भोजन कराना, तत्पश्चात् आपने अन्न ग्रहण करना. हे पाण्डवश्रेष्ठ ! गाय बैल आदिको घरमें बन्धनमें रख तथा देखनेवाले मनुष्योंको कुछ भी भाग न देकर स्वयं जो मनुष्य अकेला भोजन करता है वह केवल पाप ही भक्षण करता है. गृहकी वृद्धिके इच्छुक गृहस्थने अपनी जातिके वृद्ध मनुष्य और अपने दरिद्री हुए मित्रको अपने घरमें रखना. स्वार्थसाधनके हेतु सदैव अपमानको आगे तथा मानको पीछे रखना, कारण कि स्वार्थसे भ्रष्ट होना मूर्खता है. थोडेसे लाभके लिये विशेष हानि न सहना. थोडा खर्च करके अधिक बचाना इसीमें चतुराई है. लेना, देना तथा अन्य कर्तव्य कर्म उचित समय पर जो शीघ्र न किये जाय तो उनके अन्दर रहा हुआ रस काल चूस लेता है. जहां जाने पर आदर सत्कार नहीं मिलता, मधुर वार्तालाप नहीं होता, गुणदोषकी भी बात नहीं होती, उसके घर कभी गमन नहीं करना. हे अर्जुन ! बिना बुलाये घरमें प्रवेश करे, बिना पूछे बहुत बोले, तथा बिना दिये आसन पर आपही बैठ जावे वह मनुष्य अधम है । शरीरमें शक्ति न होते क्रोध करे,निर्धन होते मानकी इच्छा करे,