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________________ (५१७) तीक्ष्णशत्रुको जीत सकता है. जैसे अष्टापद पक्षी मेघका शब्द सुन उसकी तरफ उछल २ कर अपना शरीर तोड डालता है, उस तरह अपनी तथा शत्रुकी शक्तिका विचार न करते जो शत्रु पर धावा करता है, वह नष्ट होजाता है. जैसे कौवीने सुवर्णसूत्रसे कृष्ण सर्पको नीचे गिराया, उसी तरह चतुरमनुष्यने जो कार्य पराक्रमसे न हो सके उसे युक्तिसे करना. नख तथा सींगवाले जानवर,नदी,शस्त्रधारी पुरुष, स्त्री और राजा इनका कदापि विश्वास न करना चाहिये. सिंहसे एक बगुलेसे एक, मुर्गेसे चार, कौएसे पांच, श्वानसे छः और गधेसे तीन शिक्षा लेना चाहिये.सिंह जैसे सर्व शक्तिसे एक छलांग मारकर अपना कार्यका साधन करता है, उसी प्रकार चतुरपुरुषने थोड़ा अथवा अधिक जो कार्य करना होवे, उसे सर्वशक्तिसे करना. बगुलेकी भांति कार्यका विचार करना, सिंहकी भांति पराक्रम करना, भेड़ियेकी भांति छापा मारना और खरगोशकी भांति भाग जाना चाहिये. १ सर्व प्रथम उठना, २ लड़ना, ३ बंधुवर्गमें खाने की वस्तुएं वितरण करना, ४ स्त्रीको प्रथम वशमें कर पश्चात् भोगना. ये चार शिक्षाएं मुर्गेसे लेना, १ एकान्तमें स्त्रीसे भोग करना, २ समय पर ढिठाई रखना, २ अवसर आने पर घर बांधना, ४ प्रमाद न करना और ५ किसी पर विश्वास न रखना ये पांच शिक्षाएं कौअसे लेना. १ स्वेछानुसार भोजन करना, २ समय पर अल्पमात्रमें संतोष रखना, ३ सुखपूर्वक निद्रा लेना, ४ सहजमें .
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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