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________________ (४८८) प्रत्यक्ष गुरवः स्तुत्याः, परोक्षे मित्रबान्धवाः । कर्मान्ते दासभृत्याश्च, पुत्रा नैव मृताः स्त्रियः॥१॥ गुरुकी उनके सन्मुख, मित्र तथा बान्धवोंकी उनके पीछे, नौकर दास आदिकी उनका काम अच्छा होने पर तथा स्त्रियोंकी उनके मर जानेके अनन्तर स्तुति करना चाहिये, परन्तु पुत्रकी स्तुति तो बिलकुल ही न करना. कदाचित् इसके बिना न चले तो स्तुति करना पर प्रत्यक्ष न करना, कारण कि, इससे उनकी गुणवृद्धि रुक जाती है व वृथा अहंकार पैदा होता है. ॥ २२ ॥ दंसेइ नरिंदसभं देसंतरभावपयडणं कुणइ ॥ इच्चाइ अवच्चगय, उचिअं पिउणो मुणेअव्वं ॥२३॥ अर्थः--पिताने पुत्रको राजसभा बताना, तथा विदेशके आचार और व्यवहार भी स्पष्टतः बताना. इत्यादि पिताका पुत्रके सम्बन्धमें उचितआचरण है ! राजसभा दिखानेका कारण यह है कि, राजसभाका परिचय न होवे तो किसी समय दुर्दैव वश यदि कोई आकस्मिक संकट आ पडे तब वह कायर होजाता है तथा परलक्ष्मीको देखकर जलनेवाले शत्रु उसको हानि पहुंचाते हैं. कहा है कि: गन्तव्य राजकुले, द्रष्टव्या राजपूजिता लोकाः । __ यद्यपि न भवन्त्यर्थास्तथाप्यनर्था विलीयन्ते ॥ १॥ राजदरबारमें जाना तथा राज्यमान्य लोगोंको देखना चाहिये. यद्यपि उससे कोई अर्थलाभ नहीं होता तथापि
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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