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________________ (४८७) से छोटोंकी प्रशंसा होती है । घरका कार्यभार योग्य परीक्षा करके छोटा पुत्र योग्य होवे तो उसीके सिर पर सौंपना । कारण कि, ऐसा करने ही से निर्वाह होता है, तथा इससे शोभा. आदि भी बढना संभव है । प्रसेनजित राजाने प्रथम समस्तपुत्रोंकी परीक्षा करके सौवें ( सबसे छोटे ) पुत्र श्रेणिकको राज्य सौंपा । पुत्र ही की भांति पुत्री, भतीजे आदिके सम्बन्धः में भी योग्यतानुसार उचितआचरण जानो। ऐसा ही पुत्रवधू. के लिये समझो। जैसे धनश्रेष्ठीने चाक्लके पांच दाने दे परीक्षा करके चौथी बहू रोहिणी ही को घरकी स्वामिनी बनाइ । तथा उज्झिता, भोगवती और रक्षिता इन तीनों बड़ी बहुओंको अनुक्रमसे गोवर आदि निकालनेका, रसोई बनानेका तथा भंडारका काम सौंपा । (२१) पञ्चक्खं न पसंसइ, वसणोवहयाण कहइ दुरवत्थं ।। आयं वयमवसेस च सोहए सयमिमेहिंतो ॥२२॥ अर्थः -पिता पुत्रकी उसके सन्मुख प्रशंसा न करे, यदि पुत्र किसी व्यसनमें पड जावे तो उसे छूतादिव्यसनसे होने वाली, धननाश, लोकमें अपमान, तर्जना, ताडना आदि दुर्दशा सुनावे, जिससे वह व्यसनोंसे बचे, तथा लाभ, खर्च व शिलक तपासता रहे, जिससे पुत्र स्वेच्छाचारी भी न होने पावे तथा अपना बडप्पन भी रहे. “पुत्रकी उसके सन्मुख प्रशंसा न करे." ऐसा कहनेका यह हेतु है कि, प्रथम तो पुत्रकी प्रशंसा करना ही नहीं. कहा है कि--
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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