SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८९) अनर्थका नाश तो होता ही है. इसलिये राजसभाका परिचय अवश्य कराना चाहिये. विदेशके आचार तथा व्यवहार स्पष्टतः बतानेका कारण यह है कि, परदेशके आचारव्यवहारका ज्ञान न होवे और कारणवश कहीं जाना पडे तो वहांके लोग इसे परदेशी समझकर सहज ही में व्यसनके जाल में फंसा दें. अतएव प्रथमही से भलीभांति समझा देना चाहिये. पिताकी तरह माताने भी पुत्र तथा पुत्रवधूके सम्बन्धमें यथासम्भव उचितआचरण पालन करना. माताने सौतेले 'लडकेके सम्बन्धमें विशेष उचितआचरण पालना. कारण कि, वह प्रायः सहज ही में भिन्नभाव समझने लग जाता है. इस विषयमें सौतेली माकी दी हुई उडदकी राबड़ी ओकनेवाले ( वमन करनेवाले ) पुत्रका उदाहरण जानो.।। २३ ।। सयणाण समुचिअभिणं, जं ते निअगेहवुट्टिकज्जेसु॥ ___समाणिज सयावि हु, करिज हाणीसुवि सभीवे ॥२४॥ अर्थ:-पिता, माता तथा स्त्रीके पक्षके लोग स्वजन कहलाते हैं. उनके सम्बन्धमें पुरुषका उचितआचरण इस प्रकार है. अपने घरमें पुत्रजन्म तथा विवाह सगाई प्रमुख मंगल कार्य होवे तब उनका सदा आदर सत्कार करना, वैसेही उनका किसीप्रकारकी हानि होजावे तो अपने पास रखना. सयमवि सिं वसणूसक्सु होअवमंतिऑमि सया ॥ .. वीणविहवाण रोगाउराण कायन्नमुद्धरणं ॥ २५ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy