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________________ (४७९) कृत्य बिगडते हैं। स्त्रियोंको कोई उद्यम न हो तो वे चपलस्वभावसे बिगडती हैं । गृहकृत्योंमें स्त्रियोंका मन लगा देने ही. से उनकी रक्षा होती है । श्रीउमास्वातिवाचकजीने प्रशमरतिग्रन्थमें कहा है कि, पुरुषने पिशाचका आख्यान सुनकर और कुल स्त्रीका निरन्तर रक्षण हुआ देखकर अपनी आत्माको संयमयोगसे से सदैव उद्यममें रखना. स्त्रीको अपनेसे अलग नहीं रखना यह कहा इसका कारण यह है कि, प्रायः परस्पर दर्शन ही में प्रेमका वास है. कहा है कि देखनेसे, वार्तालाप करनेसे, गुणके वर्णनसे, इष्टवस्तु देनेसे, और मनके अनुसार बर्ताव करनेसे पुरुषमें स्त्रीका प्रेम दृढ़ होता है. न देखनेसे, अतिशय देखनेसे, मिलने पर न बोलनेसे, अहंकारसे और अपमानसे प्रेम घटता है । पुरुष नित्य देशाटन करता रहे तो स्त्रीका मन उस परसे उतर जाता है, और उससे कदाचित् वह अनुचित कृत्य भी करने लगती है, इसलिये स्त्रीको अपनेसे अलग न रखना चाहिये । (१५) अवमाणं न पयंसइ, खलिए सिक्खेइ कुविअमणुणेइ ॥ धणहाणिवुड्डिघरमंतवइयरं पयडइ न तीसे ॥ १६ ॥ - अर्थः-पुरुष अकारण क्रोधादिकसे अपनी स्त्रीके सन्मुख " तेरे ऊपर और विवाह कर लूंगा" ऐसे अपमानजनक वचन न प्रकट करे, कुछ अपराध भी हुआ हो तो उसको एकान्तमें ऐसी शिक्षा दे कि जिससे वह पुनः वैसा अपराध न करे. विशेष
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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