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हलके वचन आदि देखने सुननेसे स्त्रियोंका समूल निर्मल मन वर्षाऋतुके पवनसे दर्पणकी भांति प्रायः बिगडता है. (१४)
रुंभइ रथणिपयारं, कुसीलपासंडिसंगमवणेइ ।। गिहकजेसु निओअइ. न विओअइ अप्पणा सद्धिं ॥१५॥
अर्थः-पुरुष अपनी स्त्रीको रात्रिमें बाहर राजमार्गमें अथवा किसीके घर जानेको मना करे, कुशील तथा पाखंडीकी संगतिसे दूर रखे, देना लेना सगे सम्बन्धियोंका आदर मान करना, रसोइ करना इत्यादि गृहकार्यमें अवश्य लगावे, अपनेसे अलग अकेली न रखे । स्त्रीको रात्रि में बाहर जानेसे रोकनेका कारण यह है कि, मुनिराजकी भांति कुलीनस्त्रियोंकों भी रात्रिमें बाहिर हिरना फिरना घोर अनर्थकारी है. धर्मसम्बन्धी आवश्यकआदि कृत्य के लिये भेजना होवे तो माता, बहिन आदि सुशीलस्त्रियोंके समुदाय ही के साथ जानेकी आज्ञा देना चाहिये। .. स्त्रीके गृहकृत्य इस प्रकार हैं:
बिछौना आदि उठाना, गृह साफ करना, पानी छानना, चूल्हा तैयार करना, बरतन (बासन) धोना, धान्य पीसना तथा कूटना, गायें दुहना, दही बिलौना, रसोई बनाना, उचित रीतिसे अन्न परोसना, बरतन (बासन) आदि ठीक करना, तथा साम, भर्तार, ननद, देवर आदिका विनय करना आदि. स्त्रियोंको गृहकृत्योंमें अवश्य लगानेका कारण यह है कि, ऐसा न करनेसे स्त्री सर्वदा उदास रहती है. स्त्रियोंके उदासीन होनेसे गृह