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________________ (४७२) धनिक बनानेवाले और श्रावकधर्ममें स्थापन करनेवाले जिनदासश्रेष्ठीका दृष्टान्त जानो। अपने धर्माचार्यको पुनः धर्ममें स्थापन करनेके ऊपर निद्रादिप्रमादमें पडे हुए शेलकाचार्यको बोध करनेवाले पंथकशिष्यका दृष्टान्त समझो। इत्यादिक पिता संबंधी उचित आचरण हैं। मातासंबंधी उचित आचरण भी पिताकी भांति ही जानो (६)। मातासम्बन्धी उचितआचरणमें जो विशेषता है वह कहते हैं___नवरं से सविससं, पयडइ भावाणुवित्तिमप्पडिमं ॥ इत्थीर हावसुलहं, पराभवं वइइ न हु जेण ॥ ७ ॥ अर्थ- मातासम्बन्धी उचितआचरण पिता समान होते हुए भी उससे इतना विशेष है कि, माता स्त्रीजाति है, और स्त्रीका स्वभाव ऐसा होता है कि, कुछ ने कुछ बात ही में वह अपना अपमान मान लेती है, इसलिये माता अपने मनमें स्त्रीस्वभावसे किसी तरह भी अपमान न लावे, ऐसी रीतिसे सुपुत्रने उनकी इच्छानुसार पितासे भी अधिक चलना । अधिककहनेका कारण यह है कि, मातापिताकी अपेक्षा अधिक पूज्य है । मनुने कहा है कि- उपाध्यायसे दशगुणा श्रेष्ठ आचार्य है, आचार्यसे सौगुणा श्रेष्ठ पिता है और पितासे हजार गुणी श्रेष्ठ माता है । दूसरोंने भी कहा है कि- पशु द्धपान करना हो तब तक माताको मानते हैं, अधमपुरुष विवाह होने तक
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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