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________________ (४७३) मानते है, मध्यमपुरुष घरका कामकाज उसके हाथसे चलता हो तब तक मानते हैं, और उत्तमपुरुष तो यावज्जीव तीर्थकी भांति मानते हैं । पशुओंकी माता पुत्रको केवल जीवित देखकर संतोष मानती है, मध्यमपुरुषोंकी माता पुत्रकी कमाईसे प्रसन्न होती है, उत्तमपुरुषोंकी माता पुत्रके वीरकृत्योंसे संतुष्ट होती है और लोकोत्तरपुरुषोंकी माता पुत्रके पवित्र आचरणसे खुशी होती है । (७) अब बन्धुसम्बन्धी उचितआचरणका वर्णन करते हैं । उचिों एअं तु सहोअरंमि ज निअइ अप्पसममेअं ॥ जिटुं व कणिटुंपिहु, बहु मन्नइ सम्बकज्जेसु ॥ ८॥ अर्थः- अपने सहोदरभाईके सम्बन्धमें उचितआचरण यह है कि, उसे आत्मवत् समझना । छोटे भाईको भी बडे भाईके समान बहुत मानना । " बडे भाईके समान ऐसा कहनेका कारण यह है कि, " ज्येष्ठो भ्राता पितुः समः " ( ज्येष्ठ भाई पिताके समान है ) ऐसा कहा है । इससे ' बडे भाईके समान' ऐसा कहा । जैसे लक्ष्मण श्रीरामको प्रसन्न रखता था, वैसे ही सौतेले छोटे भाईने भी बडे भाईकी इच्छाके अनुकूल बर्ताव करना । इसी प्रकार छोटे बडे भाईयोंके स्त्रीपुत्रादिक लोगोंने भी उचितआचरणमें ध्यान देना चाहिये । (८) दंसइ न पुढोभावं, मन्भावं कहइ पुच्छइ अ तस्स ॥ ववहारांम पयट्टइ, न निगूहई थेवमवि द्रविणं ॥९॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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