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________________ ( २६ ) टेढी गति होती है । 'तूं वैरागकी भांति राज्य छोड़कर कहीं दूर चला गया है' यह सोचकर इच्छित अवसर मिलने से प्रबल हुई शाकिनी समान तेरी स्त्रीने तुरत अपने भाईको खबर दी कि 'राज्य छीनने का यह मौका है' अपना स्वार्थ साधने के लिये कपट ही एक मात्र अबलाओं का भारी बल है । बहिनका संदेशा पाकर चन्द्रशेखरने चतुरंगिणी सेना के साथ आकर तेरे राज्यको लेने के लिये चढाई की है। भला सामने आमा राज्य कौन छोडे ? शत्रुको देख कर तेरे वीर सरदारोंनें भीतरसे नगरके द्वार बंद कर दिये। इधर जिस तरह सर्प अपने शरीर से धनको घेरता है उसी तरह चन्द्रशेखरने अपनी सेना से चारों तरफसे नगरको घेर लिया है । तेरे पराक्रमी सरदार नगरके अन्दर चारों तरफ खडे रह कर शत्रुसे लड रहे हैं; परन्तु “ नायक बिना सेना दुर्बल है " इस कहावत के अनुसार अपने आपको बिना नायक समझनेवाली तेरी सेना किस प्रकार जीत सकती है ? इस समय हम नगरमें किस भांति जा सकेंगे ? इससे राजन् ! मैं मनमें बहुत चिंतित होकर इस वृक्ष पर बैठा हूं । तोते के मुंह से यह हृदय विदारक बात सुनते ही राजा के मनमें संताप उत्पन्न हुआ, मानो नगरमें जानेका मार्ग मिल गया हो पश्चात् मनमें विचार किया कि, “दुष्ट आचरणवाली खांके मनके अन्दर रहनेवाले कपटको धिक्कार है ! चन्द्रशेखर राजाका
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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