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________________ ( २५ ) इसमें तो कहना ही क्या है ? क्या चंद्रमा अपने आश्रित खरगोश के बालक को क्षुद्र होनेसे उसे गोदमें से अलग पटक देता है ? नहीं, हे राजन् ! तूं जगतमें श्रेष्ठ व आर्य होते हुए भी अनार्यकी भांति क्षण भरमें मुझे भूल गया, परन्तु मैं क्षुद्र प्राणी तेरे समान मनुष्यको कैसे भूल सकता ?" ___ तोतेके ये वचन सुन कर राजाको बडा आश्चर्य हुआ और गांगलि ऋषिको प्रणाम करके शीघ्र स्त्री समेत घोडे पर बैठकर तोतेके पीछे चला । अपने नगरको पहुंचनेकी बडी उत्सुकतास राजा तोतेके पीछे २ जा रहा था। ज्योंही उसका क्षितिप्रतिष्ठित नगर कुछ २ नजर आने लगा तब वह तोता सुस्त होकर एक वृक्ष पर बैठ गया। यह देख चकित होकर राजाने आग्रहपूर्वक तोतेसे पूछा- 'हे तोते ! यद्यपि नगरके महल कोट आदि दीखते हैं तथापि अभी नगर दूर है, तूं इस भांति अप्रसन्न होकर क्यों बैठ गया ?" तोतेने हुंकारा ( हां ) देकर कहा कि--"ऐसा करनेका एक भारी कारण है । पंडित-जन बिना कारण कोई भी कार्य नहीं करते हैं.' राजाने घबराकर पूछा- "वह क्या?" तोता बोला-हे राजन् ! सुन । चन्द्रपुरीके राजा चन्द्रशेखरकी चन्द्रवती नामक बहिन जो कि तेरी प्यारी स्त्री है वह अन्दरसे कपटी व ऊपरसे मधुर भाषण करनेवाली होनेसे गायके समान मुंहवाले सिंहके समान है । जलके समान स्त्रीकी भी प्रायः
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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