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________________ (४५९) योग्य सहायता न होते जाना तथा बहुत दुष्काल पडा हो वहां, दो राजाओंकी परस्पर लडाई चलती हो वहां, डाकाआदि पडनेसे मार्ग बंद हो वहां, सघन बनमें तथा सायंकाल. आदि भयंकर समय में अपनी शक्ति बिना तथा किसीकी सहायता बिना जाना, कि जिससे प्राण अथवा धनकी हानि हो, अथवा अन्य कोई अनर्थ सन्मुख आवे, सो कालविरुद्ध कहलाता है. अथवा फाल्गुनमास व्यतीत होजानेके बाद तिल पीलना, तिलका व्यापार करना, अथवा तिल भक्षण करनाआदि, वर्षाकालमें चवलाईआदिका शाक लेना आदि, तथा जहां बहुत जीवाकुल भूमि होवे वहां गाडे गाडी आदि हांकना. ऐसा भारी दोष उपजानेवाला कृत्य करना, वह कालविरुद्ध कहलाता है। राजविरुद्ध-राजाआदिके दोष निकालना, राजाके माननीय मंत्रीआदिका आदरमान न करना, राजाके विपरीतलोगोंकी संगति करना, बैरीके स्थानमें लोभसे जाना, बैरीके स्थानसे आइ हुइ व्यक्ति के साथ व्यवहारादि रखना, राजाकी कृपा है ऐसा समझकर उसके किये हुए कार्यों में भी फेरफार करना, नगरके शिष्टलोगोंसे विपरीत चलना, अपने स्वामीके साथ नमकहरामी करना इत्यादि राज्यविरुद्ध कहलाता है. उसका परिणाम बडा ही दुःसह है, जैसे भुवनभानुकेवलीका जीव रोहिणी हुई. वह यद्यपि निष्ठावान, पढी हुई तथा स्वा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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