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________________ ध्यायके ऊपर लक्ष रखनेवाली थी, तथापि विकथाके रससे वृथा रानीका कुशीलत्व आदि बोलनेसे राजाको उस पर रोष चढा. पश्चात् उसकी जीभ काटकर उसे देशसे निर्वासित कर दी. जिससे दुःखित रोहिणीने अनेकों भवोंमें जिव्हाछेद आदि दुःख सहन किये. लोकविरुद्ध-लोककी तथा विशेषकर गुणीजनोंकी निन्दा न करना चाहिये. कारण कि लोकनिंदा करना और अपनी प्रशंसा करना ये दोनों बातें लोकविरुद्ध कहलाती हैं. कहा है कि-दूसरेके भले बुरे दोष कहनेमें क्या लाभ है ? उससे धन अथवा यशका लाभ तो होता नहीं, बल्कि जिसके दोष निकालें वह मानो अपना एक नया शत्रु उत्पन्न किया ऐसा हो जाता है. सुटुवि उज्जममाण, पंचेव करिति रित्तयं समणं । अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य ॥ १ ॥ १ निजस्तुति, २ परनिन्दा, ३ वशमें न रखी हुई जीभ,४ उपस्था याने जननेन्द्रिय और ५ कषाय ये पांच बातें संयमके निमित्त पूर्ण उद्यम करनेवाले मुनिराजको भी हीन कर देती है. जो वास्तवमें किसी पुरुषमें अनेक गुण हों तो वे तो बिना कहे ही अपना उत्कर्ष करते ही हैं और जो ( गुण ) न होवें तो व्यर्थ आत्मप्रशंसा करनेसे क्या होता है ? आत्मश्लाघी मनुष्यको उसके मित्र हंसते हैं, बान्धवजन उसकी निंदा करते हैं, बडे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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