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________________ (४३७) अनर्थ उत्पन्न करनेवाली पापऋद्धि कहलाती है. पूर्वभवमें किये हुए पापकर्मसे अथवा भावीपापसे पापऋद्धि प्राप्त होती है. इस विषय पर दृष्टान्त सुनोः---- वसन्तपुर नगरमेंएक ब्राह्मण, एक क्षत्रिय, एक वणिक और एक सुनार ये चार मित्र थे. वे द्रव्योपार्जनके निमित्त एक साथ परदेशको निकले. रात्रिको एक उद्यानमें ठहरे. वहां उन्होंने वृक्षकी शाखामें लटकता हुआ एक सुवर्णपुरुष देखा. उन चारोंमेंसे एकने कहा-'यह द्रव्य है' सुवर्णपुरुषने कहा'द्रव्य है, परंतु अनर्थ करने वाला है यह सुन सबने भयसे उसे छोड दिया. परन्तु सुनारने उससे कहा--'नीचे गिर' तदनुसार स्वर्णपुरुष नीचे गिरगया. सुनारने उसकी एक अंगुली काटकर शेष भागको एक गड्ढमें फेंक दिया, यह सबने देखा. पश्चात् उनमेंसे दो जने भोजन लानेके लिये गांवमें गये और शेष दोनोंको मारनेकी इच्छासे विष-मिश्रित अन्न लाये. इधर उन दोनोंने इन दोनोंको आते ही खड्ग प्रहारसे मारडाला और स्वयं विषमिश्रित अन्न भक्षण किया जिससे मरगये. सारांश यह कि पापऋद्धिसे द्रव्यके कारण चारोंका विनाश होगया. ___ इसलिये प्रतिदिन देवपूजा, अन्नदानआदि पुण्य तथा अवसर पर संघपूजा, साधर्मिकवात्सल्यआदि पुण्य कृत्य करके अपनी लक्ष्मी धर्मकृत्यमें लगानी चाहिये. साधर्मिकवात्सल्यआदि पुण्यकृत्य बहुत द्रव्यका व्यय करनेसे होते हैं. और
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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