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________________ (४३८) इसीलिये वे श्रेष्ठ भी कहलाते हैं तथा नित्य होनेवाले पुण्य छोटे कहलाते हैं. यह बात सत्य है, तथापि ये पुण्य नित्य करते रहना चाहिये, क्योंकि उससे भी बहुत फल उत्पन्न होता है. इसलिये नित्यके पुण्य करके ही अवसरपुण्य करना उचित है. धन अल्प हो अथवा ऐसेही अन्य कारण हों तो भी धर्मकार्य करनेमें विलंब न करना चाहिये. कहा है कि देयं स्तोकादपि स्तोकं, न व्यपेक्ष्या महोदयः। इच्छानुसारिणी शक्तिः, कदा कस्य भविष्यति ॥१॥ ___अल्पधन होवे तो अल्पमेंसे अल्प भी देना, परन्तु बडे उदयकी अपेक्षा नहीं रखना. इच्छानुसार दान देनेकी शक्ति कब किसे मिलनेवाली है ? कल करनेका विचार किया हुआ धर्मकार्य आज ही करना. तथा पिछले पहरको धारा हुआ धर्मकार्य दुपहरके पहिले ही करलेना चाहिये. कारण कि, मृत्यु आती है तो यह नहीं विचार करती कि 'इसने अपना कर्तव्यकर्म कितना करलिया है, तथा कितना बाकी रखा है ? । द्रव्योपार्जन करनेका भी यथायोग्य उद्यम नित्य करना चाहिये. कहा है कि- वणिक, वेश्या, कवि, भट्ट, चोर, ठग, ब्राह्मण ये मनुष्य जिस दिन कुछ लाभ न हो उस दिनको निष्फल मानते हैं. अल्प लक्ष्मीकी प्राप्ति होनेसे उद्यम न छोड देना चाहिये. माघकविने कहा है कि- जो मनुष्य अल्प संपत्तिक लाभसे अपनेको उत्तमस्थितिमें मानता है, उसका दैव भी कर्तव्य किया जान कर
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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