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________________ (४१३) चांडाल ) कहलाते हैं. और पांचवा जातिचांडाल है । विश्वासप तके ऊपर यहां विसेमिराका दृष्टान्त कहते हैं. यथाः विशालानगरीमें नंदनामक राजा, भानुमतीनामक रानी, विजयपालनामक राजपुत्र और बहुश्रुतनामक मंत्री था. राजा नंद भानुमतीरानी में बहुत आसक्त होनेसे सभामें भी उसको पासही रखता था. वैद्यो गुरुश्च मन्त्री च, यस्य राज्ञः प्रियंवदाः । शरीरधर्मकोशेभ्यः, क्षिप्रं स परिहीयते ॥१॥" जिस राजाके वैद्य, गुरु, और मंत्री प्रसन्नता रखने के निमित्त, केवल मधुरवचन बोलने ही वाले हों, राजाके कोपके भयसे सत्यवात भी नहीं कहते, क्रमशः उस राजाके शरीर, धर्म और भंडारका नाश होता है. ऐसा नीतिशास्त्रका वचन होनेसे राजाको सत्यबात कहना अपना कर्तव्य है. यह सोचकर मंत्रीने राजासे कहा कि, " हे महाराज! सभामें रानीसाहिबको पास रखना योग्य नहीं है, कहा है कि ___ अत्यासन्ना विनाशाय, दूरस्था न फलप्रदाः । सव्या मध्यमभावेन, राजवह्निगुरुत्रियः ॥ १ ॥" राजा, अग्नि, गुरु, और स्त्री ये चार वस्तुएं बहुत समीप रहें तो विनाश करती हैं, और बहुत दूर हों तो अपना अपना फल बराबर नहीं दे सकतीं. इसलिये रानीका एक उत्तम छायाचित्र ( फोटो) बनवाकर उसे प्रास राखिये.” राजाने
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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