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________________ (४१४) मंत्रीकी बात स्वीकार कर रानीका छायाचित्र बनवाकर अपने गुरु शारदानन्दनको बताया. उन्होंने अपनी विद्वत्ता बताने के लिये कहा कि, " रानीकी बायीं जांघ पर एक तिल है, वह इसमें नहीं है " गुरुके इन वचनोंसे राजाके मनमें रानीके शीलके सम्बन्धमें संशय आया, तथा उसने मन्त्रीसे कहा कि, " शारदानन्दनको मार डालो.” । सहसा विदधीत न क्रिया मविवेकः परमापदां पदम् । वृणते हि विमृश्यकारिण, गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥ १।" सगुणमपगुणं कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पण्डितेन । अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः __ मन्त्रीने विचार किया कि, सहसा कोई कार्य नहीं करना. विचार न करनेसे महान् संकट उत्पन्न होते हैं. सद्गुणोंसे लालायित सम्पदाएं विचार करके कार्य करनेवाले पुरुषको स्वयं आकर वरती हैं, पंडितपुरुषने शुभ अथवा अशुभ कार्य करते समय प्रथम उसके परिणामका निर्णय कर लेना चाहिये. कारण कि अतिशय उतावलसे किये हुए कृत्योंके परिणाम शल्यकी भांति मृत्युसमय तक हृदयमें वेदना उत्पन्न करते हैं । ऐले नीतिशास्त्रके वचन स्मरण आनेसे मन्त्रीने शारदानन्दनको अपने घरमें छिपा रखा. एक समय राजपुत्र मृगया करते एक सूअरके पीछे बहुत दूर निकल गया. सन्ध्या होजानेसे एक सरोवरका जल पीकर बाघके भयसे वह एक वृक्ष पर
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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