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________________ (४१२) बनवाया, व छः मास तक उसे काममें लेकर एक द्रहमें डाल दिया. भक्ष्य वस्तु समझकर एक मच्छी उसे निगल गई. धीवरने वह मछली पकडी तो उसके पेटमेंसे उक्त बाट निकला. नामपरसे पहिचानकर धीवरने वह बाट श्रेष्ठीको दिया. जिससे श्रेष्ठीको तथा उसके समस्त परिवारको शुद्धव्यवहार पर विश्वास उत्पन्न होगया. इस तरह श्रेष्ठीको बोध हुआ तब वह सम्यक् प्रकारसे शुद्धव्यवहार करके बडा धनवान होगया. राजद्वारमें उसका मान होने लगा. वह श्रावकोंमें अग्रसर व सब लोगोंमें इतना प्रख्यात हुआ कि, उसका नाम लेनेसे भी विघ्न, उपद्रव दूर होने लगे. वर्तमानसमयमें भी मल्लाह लोग नौका चलाते समय “ हेला, हेला" ऐसा कहते सुनते हैं.....इत्यादि _ .. विवेकीपुरुषने सर्व पापकर्म त्यागना चाहिये. उसमें भी अपने स्वामी, मित्र, अपने ऊपर विश्वास रखनेवाला, देव, गुरु, वृद्ध तथा बालक इनके साथ बैर करना अथवा उनकी धरोहर दबा जाना ये उनकी हत्या करने के समान है, अतएव ये तथा अन्य महापातकोंका अवश्य त्याग करना चाहिये. कहा है कि-- कूटसाक्षी दीर्घरोषी, विश्वस्तनः कृतघ्नकः । चत्वारः कर्मचाण्डालाः, पश्चमो जातिसम्भवः ॥ १॥ झूठी साक्षी भरनेवाला, बहुत समय तक रोष रखनेवाला, विश्वासघाती और कृतघ्न ये चारों कर्मचांडाल ( कर्मसे हुए
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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